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Poem on Postman


नित्या नियम से पौने दस पर,
एक डाकिया आता है.
चिट्ठी पतरी मनी ऑर्डर,
अपने संग में लाता है.

तंन पर पहने खाकी वर्दी,
खाकी थैला कंधे पर.
घर-घर डाक बाँटता फिरता,
सर्दी, गर्मी, कड़ी दोपहर.

दुखियों के दुख-दर्द बाँटता,
उनकी चिट्ठी पढ़ता है.
और कभी शबनम खाला के,
शौहर को खत लिखता है.

नीम तले मंदिर के पीछे,
जुम्मन तक से नाता है.
उल्टे सीधे सभी पतों पर,
डाक सदा पहुँचाता है.


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