हो गया मुश्किल शहर में डाकिया दिखना ।

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फ़ोन पर बातें न करना चिट्ठियाँ लिखना । हो गया मुश्किल शहर में डाकिया दिखना । चिट्ठियों में लिखे अक्षर मुश्किलों में काम आते हैं, हम कभी रखते किताबों में इन्हें कभी सीने से लगाते हैं, चिट्ठियाँ होतीं सुनहरे वक़्त का सपना । इन चिट्ठियों से भी महकते फूल झरते हैं, शब्द होठों की तरह ही बात करते हैं ये हाल सबका पूछतीं हो गैर या अपना । चिट्ठियाँ जब फेंकता है डाकिया चूड़ियों-सी खनखनाती हैं, तोड़ती हैं कठिन सूनापन स्वप्न आँखों में सजाती हैं, याद करके इन्हें रोना या कभी हँसना । वक़्त पर ये चिट्ठियाँ हर रंग के चश्में लगाती हैं, दिल मिले तो ये समन्दर सरहदों के पार जाती हैं, चिट्ठियाँ हों इन्द्रधनुषी रंग भर इतना ।

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