डिज़िटल युग का डाकिया !!!!
पुराने समय में जब भी साइकिल की घंटी सुनाई देती थी तो लोगों को आभास हो जाता था की उनकी तरफ डाकिया आ रहा है। लोगों में उत्साह भर जाता था कि जरूर उनका पत्र आया होगा। जिसका भी पत्र आता वो उसे रोक लेता और पत्र खोलकर सुनाने को कहता। इन पत्रों में लोगो की भावनाएं ,संवेदनायें तथा ख़ुशी भरी होती थी। वो वही डाकिये से पत्र लिखवाते और उसको भेजने के लिए बोल देते। उस समय पत्र ,पोस्टकार्ड और अन्तर्देशीय पत्रों का बहुत प्रभाव था ,पार्सल तो कोई इक्का दुक्का ही आता जाता था। डाकिया एक तरह से परिवार का सदस्य होता था। उसे सबके सुख दुःख की खबर मालूम होती थी।
देश की सीमा पर तैनात सिपाहियों का मनोबल भी चिट्ठियों से बढ़ता था। जब उनके परिवार वाले घर से सकुशल समाचार की चिट्ठी सीमा पर भेजते थे।