Sign in
Sign in
Recover your password.
A password will be e-mailed to you.
मैं पोस्टकार्ड हूँ ,मुझे 1 जुलाई 1879 में देश में शुरू किया गया था। पहले ही वर्ष साढ़े 7 लाख पोस्टकार्ड बिके थे। किसी ज़माने में मैं किताबों के बीच और सिरहाने के नीचे बहुत ही आदर से ,प्यार और सत्कार के साथ सम्भाल कर रखा जाता था।
मैं सन्देश भिजवाने का एकमात्र सस्ता जरिया था। धीरे धीरे मेरी लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी कि लोग मुझे त्योहारों पर ग्रीटिंग कार्ड की तरह इस्तेमाल करने लगे। सरकरी दफ्तरों में भी मैं सन्देश वाहक के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। देश भर में मेरी धूम मच गयी। धीरे धीरे मैं देश के हरेक गाँव और हरेक शहर में पहुंच गया। मुझपर लिखा सन्देश पढ़कर जहाँ नवविवाहिता अपने पति के नौकरी से लौटने के इंतज़ार में चूमा करती वहीँ मैंने माँ के लिए बेटे का सन्देश भी पहुंचाया है।
यह सिलसिला धीरे धीरे चलता रहा। अमीर घरानो में टेलीफोन आ गए तो मैं मध्यमवर्गीय लोगो का सन्देश वाहक बन गया। रोजाना लाखों पोस्टकार्ड डाकघर के लाल डिब्बों में पहुंचते। मेरा प्रयोग इतना चर्चित हुआ की सियासी पार्टियों ने भी मेरा प्रयोग वोट पाने के लिए किया। चाहे वो हिमाचल की गोद में बसा गाँव हो या रेगिस्तान में ,कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक लोग मेरा इंतज़ार किया करते थे। लोग बेहतरीन शब्दों से मेरी शुरुआत किया करते थे ,सबसे पहले भगवान का नाम लिखते उसके बाद बड़ों को चरण स्पर्श फिर छोटों के लिए मोहब्बत का पैगाम लिखते थे।
आजकल इंडिया डिजिटल हो गया है ऐसे में पहली जुलाई 2019 को जब मैं 150 वर्ष का हो जाऊंगा तो एक ही फ़िक्र खाये जाते है कि क्या में अपना अगला जन्मदिवस मना पाउँगा क्योकि अब मेरा प्रयोग सबसे काम हो गया है अब तो केवल स्कूली बच्चे ही मेरा प्रयोग करते हैं।
धीरे धीरे समय ने ऐसी करवट ली कि लोग मुझसे दूर होने लगे। जब मोबाइल की कॉल 8 रूपये प्रति मिनट थी तब भी मैंने अपना वजूद किसी न किसी तरह बचाये रखा। सन 2000 के बाद तो हालत ख़राब होती चली गयी। और आज हालत यह है की आजकल इक्का दुका लोग ही मुझे खरीदने के लिए डाकघर जाते हैं। ये पोस्टल ब्लॉग की टीम आपसे गुजारिश करती है कि आप आज भी पोस्टकार्ड का प्रयोग करें। बेशक ये मोबाइल का ज़माना है लेकिन जो मज़ा पोस्टकार्ड लिखने में है वो मोबाइल से बात करने में भी नहीं है
Related Posts